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MEERUT (20 May): आरटीओ ऑफिस में सबचलता है आरटीओ में कमर्शियलवाहन 4मिनी बस : 228 4बस : 2364 4लोड थ्री व्हीलर : 2935 4लाईट गुड व्हीकल : 3896 4मिनी गुड व्हीकल : 1753 4हैवी गुड व्हीकल : 6756 4कीरेन : 17 4टैंकर : 127 4डिलिवरी वैन : 78 4 हर माह दो दर्जन से अधिक वाहनों के वेरिफिकेशन के लिए कोर्ट और पुलिस के दफ्तरी आते हैं. आरटीओ आफिस में ट्रकों का लेखा-जोखा तो दर्ज है, लेकिन किसी का कोई क्रिमिनल रिकार्ड नहीं है. न ही विभाग इन क्रिमिनल वाहनों का रिकार्ड रखने की जरूरत समझता है. सभी ट्रकों को आसानी से फिटनेस सर्टिफिकेट मिल जाता है. यमदूत बने ट्रक चालकों के लाइसेंस पर पिछले पांच साल से कोई कार्रवाई नहीं हुई है, और न ही कोई ड्राइविंग लाइसेंस ही निरस्त किया गया है. लाखों की टैक्स वसूली तीन हजार ट्रकों से हर माह आरटीओ आफिस लाखों रुपये का टैक्स वसूलता है. नए वाहन को तीन साल में और पुराने वाहनों को हर साल फिटनेस के लिए आरटीओ ऑफिस बुलाया जाता है. लेकिन इन वाहनों की फिटनेस सर्टिफिकेट आसानी से मिल जाता है. हर माह आरटीओ आफिस में अपराधी वाहनों के लिए पुलिस और कोर्ट से वेरिफिकेशन लेटर आते हैं. विभाग इनके कागज और टैक्स संबंधित जानकारी देकर छुटकारा पा लेता है. विभाग ऐसे वाहनों को काली सूची में डालने के बजाय क्लीन चिट दे देता है. क्या होता है चेकिंग में सड़क पर उन्हीं वाहनों की चेकिंग की जाती है, जो बिना रोड टैक्स और बीमा कराए चल रहे हैं. ट्रक की गति, ड्राइवर की उम्र और कहीं ड्राइवर नशे में तो नहीं है कि कोई जांच नहीं होती है. पांच साल में ऐसे पांच वाहनों के ही चालान हुए हैं, जो नशे में ट्रक चला रहे थे. उनका लाइसेंस निरस्त होना चाहिए था, लेकिन विभाग ने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की. कोड पर होता है काम सूत्रों के अनुसार कुछ ट्रकों के कोड हैं जो उन वाहनों पर दर्ज होते हैं. ऐसे वाहनों की चेकिंग नहीं की जाती है. यह कोड पूरी यूपी में वैलिड होता है. विभाग के अधिकारी इसे समझते हैं. इन्ही कोड्स के चलते लापरवाह ट्रक चालक और ड्राईवर पकड़ में नहीं आते हैं. मोटर व्हीकल एक्ट मोटर व्हीकल एक्ट में आरटीओ को लापरवाह चालकों के लाइसेंस निरस्त करने और हत्यारे वाहनों का रजिस्ट्रेशन रद करने की पावर है. लेकिन विभाग के आला अधिकारी मोटर व्हीकल एक्ट पर कम अपने बनाए एक्ट पर ज्यादा चल रहे हैं. इसी वजह से ये हत्यारे ट्रक और ड्राईवर खुले घूम रहे हैं. ऐसा नहीं है कि वाहनों पर कार्रवाई नहीं होती है, फील्ड में तैनात एआरटीओ ऐसे वाहनों और परिचालकों का चालान कर गाड़ी भी सीज करते हैं. चेतावनी देने और हर्जाना वसूलने के बाद इन वाहनों को छोड़ा जाता है. लाइसेंस निरस्त तभी होता है, जब वाहन चालक अपंग हो, लापरवाह चालकों का लाइसेंस निरस्त करने और ऐसे ट्रकों पर भी कार्रवाई करना विभाग के अधिकार में है. -संजय माथुर आरटीओ इनफोर्समेंट, मेरठ
सिटी की सड़कों पर ट्रैफिक के साथ मौत भी दौड़ रही है. पता नहीं यह कब किसे गिरफ्त में ले ले. खास बात ये है कि एक्सीडेंट के सबसे ज्यादा शिकार यूथ बन रहे हैं. इनके खून से सड़कें लगातार लाल हो रही हैं. किसी का इकलौता चिराग बुझ गया तो किसी की फैमिली पर ही कहर टूट पड़ा. कोई रूम पार्टनर के साथ घूमने निकला तो मौत का भी पार्टनर बन गया. कुछ ऐसी ही है एक्सीडेंट की दास्तां. हर महीने तकरीबन 10 यूथ मौत के आगोश में समा रहे हैं.
मौत की फेहरिश्त
छवि अग्रवाल, बॉबी, शिखर राज, उदयवीर, ईशांत शर्मा, मोहित.. नामों की यह फेहरिस्त काफी लंबी है. ये सब दुनिया छोड़ चुके हैं. इन सभी में दो बात कॉमन हैं. पहली ये कि सभी की उम्र 15 से 25 के बीच रही है. दूसरी यह कि इनकी मौत की वजह एक्सीडेंट है. किसी के भविष्य ने ट्रक के नीचे दम तोड़ दिया तो किसी को बेकाबू बस ने कुचल डाला. मातम और आक्रोश पनपा, लेकिन फिर सब कुछ पहले जैसा हो गया. न तो एक्सीडेंट करने वाले पकड़े गए, न ही एक्सीडेंट की रफ्तार मंदी पड़ी. सवाल है कि आखिर इतने लोगों को खोकर भी किसी ने कोई सबक क्यों नहीं लिया.
करियर से कत्ल तक
एक्सीडेंट के कई मामले तो ऐसे हैं जिनमें करियर की सुनहरी डगर पर यूथ चले थे लेकिन वे मुकाम तक पहुंचते, इससे पहले ही बेकाबू वाहनों ने उनका कत्ल कर डाला. शुरुआत गोल्डन एवेन्यू कॉलोनी की छवि अग्रवाल से करते हैं. बीसीए कंपलीट करने के बाद छवि का पुणे के एक प्रतिष्ठित संस्थान में एमबीए में एडमीशन हो गया था. लेकिन किस्मत उसके साथ नहीं थी. मां के साथ वह स्कूटी पर शॉपिंग के लिए निकली और पीछे से आए ट्रक ने दोनों को मौत की नींद सुला दिया. कल्याण नगर का शिखर राज अपने दोस्तों के साथ हरिद्वार गया था. वह इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था. रास्ते में हुए एक्सीडेंट ने घर के इकलौते चिराग को बुझा दिया. ईशांत शर्मा ग्रेटर नोएडा के एक इंस्टीट्यूट से इंजीनियरिंग कर रहा था. मोहिद्दीनपुर चेकपोस्ट के पास उसकी बाइक टकराई और वह मौत की नींद सो गया.
मौत भी साथ
नीरज, दीपांशु और शुभम तीनों गहरे दोस्त थे. दोस्ती इतनी पक्की कि मौत भी इन्हें अलग नहीं कर सकी. तीनों बुलंदशहर के बाबू बनारसी दास कॉलेज से बीटेक कर रहे थे. तीनों मेरठ में नेहरू नगर निवासी अपने दोस्त मनीष चौधरी की बहन की शादी में आए थे. हादसा गत 28 नवंबर की रात ठीक जेल चुंगी पर हुआ. तीनों मारुति कार में सवार थे. जेल चुंगी पर सामने से आ रहा एक कैंटर अनियंत्रित होकर पलट गया और तीनों दोस्तों का अंत हो गया.
फैमिली पर कहर
पिछले दिनों रुड़की रोड पर हुए एक सड़क हादसे ने सभी के रोंगटे खड़े कर दिए थे. हरिद्वार से दिल्ली वापस लौट रही साहू फैमिली पर 12 अप्रैल की रात कहर बनकर टूटी. उड़ीसा के मूल निवासी संग्राम सिंह साहू अपने पिता, मां, पत्नी और बेटा-बेटी के साथ हरिद्वार से दिल्ली लौट रहे थे. सकौती के पास उनकी कार अज्ञात वाहन के पीछे जा घुसी. इस हादसे में साहू फैमिली के छह सदस्यों समेत सात की मौत हुई. सातवां शख्स कार चालक था.
Youth Tragedy
Reviewed by Brajmohan
on
12:29 PM
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