कुछ लोग मुस्कुराते हुए आप से कांफिडेंटली मिलते हैं वहीं कुछ लोग अपनी खुद की बनाई परेशानियों में उलझे और दूसरों पर गुस्सा करते दिख जाते हैं. दरअसल इन दोनों तरह के लोगों के सामने सिचुएशन एक जैसी ही होती है लेकिन उनका रिएक्शन डिफरेंट होता है. अपने रिएक्शन के साथ ही ये तय कर लेते हैं कि आज का दिन उनके लिए सक्सेसफुल होने वाला है या स्ट्रेसफुल. आइए इसे एक एग्जाम्पल के जरिए समझते हैं. आप ऑफिस जाते हैं और आपका एक को-वर्कर आपको घूरता है और आपके गुड मॉर्निग का जवाब भी नहीं देता है. आप किस तरह रिस्पांड करेंगे?
क्या आपके दिमाग में कुछ ऐसे सवाल आ रहे हैं.....
4मैंने उसके साथ क्या गलत किया है?
4उसकी परेशानियों के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं क्या? मेरे ही साथ उसने ऐसा बिहेव क्यों किया?
4वह मुझे पसंद क्यों नहीं करता? यहां मुझे कोई पसंद नहीं करता.
4ठीक है, मैं उससे दोबारा कभी बात करने नहीं जाऊंगा.
4ऑफिस के ऐसे दूसरे लोगों से भी दूर ही रहूंगा.
या फिर आप इस तरह से सोच रहे हैं..
4आप इसे पर्सनली नहीं लेंगे. यह समझेंगे वह खुद किसी परेशानी में भी हो सकता है.
4आपके अंदर कोई रिएक्शन नहीं होगा और आप कूल बने रहेंगे.
4को-वर्कर से बिना बातचीत के सीधे अपने काम में लग जाएंगे.
..आप इन दोनों में से खुद को किससे रिलेट कर रहे हैं ये पूरी तरह आप पर डिपेंड करता है. एक का रिजल्ट पॉजिटिव होगा और आपका दिन बेहतर साबित होगा वहीं दूसरा रिस्पांस पूरे दिन को स्ट्रेसफुल बना सकता है.
Situation+Thought =Response
नेक्स्ट टाइम जब इससे सिमिलर कोई सिचुएशन आए तो गहरी सांस लें और रियलाइज करें कि थॉट्स आपके कंट्रोल में
हैं. किसी भी सिचुएशन का आपके लिए कोई मतलब नहीं है जब तक कि आप उस पर रिएक्ट नहीं करते. रिएक्शन के बाद सिचुएशन पॉजिटिव हो सकती है, निगेटिव हो सकती है या ज्यों की त्यों बनी रह सकती है. हो सकता है कि आप सिचुएशन के कंट्रोल में आ जाएं और निगेटिव रिस्पांस देने लगें या खुद सिचुएशन को कंट्रोल में ले लें और पीसफुल तरीके से रिएक्ट करें.
We don’t respond automatically
लोग अक्सर सोचते हैं कि हमारे रिस्पॉन्स सडेनली और ऑटोमैटिकली होते हैं जिसमें हमारा कोई रोल नहीं होता. लेकिन ऐसा नहीं है. ये हमारे थॉट्स होते हैं जो हमारे रिस्पॉन्स को डिसाइड करते हैं. हम किस तरह सोचते हैं, यह पूरी तरह हमारे कंट्रोल में होता है. हम लोगों को नहीं बदल सकते लेकिन उनको लेकर अपने रिएक्शन बदल सकते हैं.
क्या आपके दिमाग में कुछ ऐसे सवाल आ रहे हैं.....
4मैंने उसके साथ क्या गलत किया है?
4उसकी परेशानियों के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं क्या? मेरे ही साथ उसने ऐसा बिहेव क्यों किया?
4वह मुझे पसंद क्यों नहीं करता? यहां मुझे कोई पसंद नहीं करता.
4ठीक है, मैं उससे दोबारा कभी बात करने नहीं जाऊंगा.
4ऑफिस के ऐसे दूसरे लोगों से भी दूर ही रहूंगा.
या फिर आप इस तरह से सोच रहे हैं..
4आप इसे पर्सनली नहीं लेंगे. यह समझेंगे वह खुद किसी परेशानी में भी हो सकता है.
4आपके अंदर कोई रिएक्शन नहीं होगा और आप कूल बने रहेंगे.
4को-वर्कर से बिना बातचीत के सीधे अपने काम में लग जाएंगे.
..आप इन दोनों में से खुद को किससे रिलेट कर रहे हैं ये पूरी तरह आप पर डिपेंड करता है. एक का रिजल्ट पॉजिटिव होगा और आपका दिन बेहतर साबित होगा वहीं दूसरा रिस्पांस पूरे दिन को स्ट्रेसफुल बना सकता है.
Situation+Thought =Response
नेक्स्ट टाइम जब इससे सिमिलर कोई सिचुएशन आए तो गहरी सांस लें और रियलाइज करें कि थॉट्स आपके कंट्रोल में
हैं. किसी भी सिचुएशन का आपके लिए कोई मतलब नहीं है जब तक कि आप उस पर रिएक्ट नहीं करते. रिएक्शन के बाद सिचुएशन पॉजिटिव हो सकती है, निगेटिव हो सकती है या ज्यों की त्यों बनी रह सकती है. हो सकता है कि आप सिचुएशन के कंट्रोल में आ जाएं और निगेटिव रिस्पांस देने लगें या खुद सिचुएशन को कंट्रोल में ले लें और पीसफुल तरीके से रिएक्ट करें.
We don’t respond automatically
लोग अक्सर सोचते हैं कि हमारे रिस्पॉन्स सडेनली और ऑटोमैटिकली होते हैं जिसमें हमारा कोई रोल नहीं होता. लेकिन ऐसा नहीं है. ये हमारे थॉट्स होते हैं जो हमारे रिस्पॉन्स को डिसाइड करते हैं. हम किस तरह सोचते हैं, यह पूरी तरह हमारे कंट्रोल में होता है. हम लोगों को नहीं बदल सकते लेकिन उनको लेकर अपने रिएक्शन बदल सकते हैं.
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Reviewed by Brajmohan
on
5:15 AM
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