रोबोट्स को इंसान की तरह काम करते फ्यूचर की कल्पना करना अब सच्चाई से अधिक दूर की सोच नहीं है. फिल्मों में आपने देखा होगा कि किस तरह से रोबोट्स हमें छोटे-छोटे कामों से मुक्ति दिलाकर बड़े कामों पर कंसनट्रेट करने का मौका देते हैं. कहीं पर यह रोबोट्स विलेन का रोल प्ले करते हैं और सारी इंसानियत के लिए ढेर सारी मुसीबतें पैदा करने लगते हैं.
यह कहा जा सकता है कि रोबोट्स इंसानों के सोचने और बिहेव करने के तरीके को चेंज करते हैं. एक हद तक ऐसा हो भी रहा है. बायोनिक लिम्ब्स और कॉकहीलर इम्प्लांट्स इंसान की कमियों को दूर कर उसे परफेक्टली फंक्शन करने का मौका दे रहे हैं. बोस्टन रेनिटल इम्प्लांट प्रोजेक्ट में तो साइंटिस्ट्स उस फार्मूले पर काम कर रहे हैं जिससे वह रोबोट के जरिए किसी ब्लाइंड की आंखों को रोशनी दे सकेंगे. यह सब कुछ रोबोटिक्स पर बेस्ड है और हमें बताता है कि किस तरह से इंसान इस मशीन पर डिपेंड होता जा रहा है.
केवल फिजिकल ही नहीं इमोशनल फील्ड पर भी रोबोट्स हमारी हेल्प कर सकते हैं. प्लिओ डायनासोर रोबोट ट्वाय इसका अच्छा एग्जांपल है. लोग इसे एक रियल पेट एनीमल समझते हैं. यह खुशी, डर, फ्रस्ट्रेशन और यहां तक कि दर्द का भी अहसास बखूबी कर सकता है.
इमोशनल लेवल पर रोबोट्स का एक यूज मेडिकल फील्ड में भी शुरू होने जा रहा है. हमारी इमोशनल स्टेट पर रिएक्ट कर सकने वाला रोबोट कठिन समय में हमारा साथी बन सकता है. मेडिकल फील्ड की बात करें तो मरीज के इमोशंस को फील कर यह रोबोट डॉक्टर्स को उस मरीज का बेहतर इलाज करने में हेल्प कर सकता है.
बच्चों में सोशल स्किल और रिस्पांसिबिलिटी डेवलप करने में भी रोबोट्स का यूज हो सकता है. हम रोबोट्स के जरिए कई सोशल हैबिट्स और अंडरस्टैंडिंग्स इनकलकेट कर सकते हैं. रोबोट्स के जरिए यह करना दूसरे तरीकों से कहीं ज्यादा आसान होगा.
मिलिट्री और पुलिस तो बॉम्ब डिटेक्शन के लिए आलरेडी रोबोट्स का यूज कर रहे हैं. इसके अलावा खतरनाक टास्क पर भी इनकी हेल्प ली जा रही है. आने वाले समय में इस इंडस्ट्री में इनका यूज और बढ़ने वाला है.
ऊपर डिस्क्राइब किए गए एग्जांपल्स से हमें पता चलता है कि हम किस तरह से रोबोट्स पर डिपेंड होते जा रहे हैं. वह हमारी जिंदगी को चेंज कर रहे हैं, लेकिन मिलियन डॉलर क्वेश्चन तो यही है कि हम उन्हें किस हद तक अपनी लाइफ में चेंज करने की परमिशन दे सकते हैं?
यह कहा जा सकता है कि रोबोट्स इंसानों के सोचने और बिहेव करने के तरीके को चेंज करते हैं. एक हद तक ऐसा हो भी रहा है. बायोनिक लिम्ब्स और कॉकहीलर इम्प्लांट्स इंसान की कमियों को दूर कर उसे परफेक्टली फंक्शन करने का मौका दे रहे हैं. बोस्टन रेनिटल इम्प्लांट प्रोजेक्ट में तो साइंटिस्ट्स उस फार्मूले पर काम कर रहे हैं जिससे वह रोबोट के जरिए किसी ब्लाइंड की आंखों को रोशनी दे सकेंगे. यह सब कुछ रोबोटिक्स पर बेस्ड है और हमें बताता है कि किस तरह से इंसान इस मशीन पर डिपेंड होता जा रहा है.
केवल फिजिकल ही नहीं इमोशनल फील्ड पर भी रोबोट्स हमारी हेल्प कर सकते हैं. प्लिओ डायनासोर रोबोट ट्वाय इसका अच्छा एग्जांपल है. लोग इसे एक रियल पेट एनीमल समझते हैं. यह खुशी, डर, फ्रस्ट्रेशन और यहां तक कि दर्द का भी अहसास बखूबी कर सकता है.
इमोशनल लेवल पर रोबोट्स का एक यूज मेडिकल फील्ड में भी शुरू होने जा रहा है. हमारी इमोशनल स्टेट पर रिएक्ट कर सकने वाला रोबोट कठिन समय में हमारा साथी बन सकता है. मेडिकल फील्ड की बात करें तो मरीज के इमोशंस को फील कर यह रोबोट डॉक्टर्स को उस मरीज का बेहतर इलाज करने में हेल्प कर सकता है.
बच्चों में सोशल स्किल और रिस्पांसिबिलिटी डेवलप करने में भी रोबोट्स का यूज हो सकता है. हम रोबोट्स के जरिए कई सोशल हैबिट्स और अंडरस्टैंडिंग्स इनकलकेट कर सकते हैं. रोबोट्स के जरिए यह करना दूसरे तरीकों से कहीं ज्यादा आसान होगा.
मिलिट्री और पुलिस तो बॉम्ब डिटेक्शन के लिए आलरेडी रोबोट्स का यूज कर रहे हैं. इसके अलावा खतरनाक टास्क पर भी इनकी हेल्प ली जा रही है. आने वाले समय में इस इंडस्ट्री में इनका यूज और बढ़ने वाला है.
ऊपर डिस्क्राइब किए गए एग्जांपल्स से हमें पता चलता है कि हम किस तरह से रोबोट्स पर डिपेंड होते जा रहे हैं. वह हमारी जिंदगी को चेंज कर रहे हैं, लेकिन मिलियन डॉलर क्वेश्चन तो यही है कि हम उन्हें किस हद तक अपनी लाइफ में चेंज करने की परमिशन दे सकते हैं?
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Reviewed by Brajmohan
on
5:44 AM
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