भाग 1: वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य - बिग बैंग सिद्धांत (The Big Bang Theory)
यह आधुनिक खगोल विज्ञान और भौतिकी का मुख्य सिद्धांत है, जिसके पास ठोस प्रमाण हैं।
1. प्रारंभिक अवस्था: एक विलक्षणता (Singularity)
समय: लगभग 13.8 अरब वर्ष पहले।
ब्रह्मांड का सारा पदार्थ और ऊर्जा एक अत्यंत सूक्ष्म, गर्म और घन बिंदु (सिंगुलैरिटी) में संपीड़ित था। इस बिंदु का आकार शून्य (अनंत घनत्व) और तापमान अनंत था।
इस बिंदु में भौतिकी के ज्ञात नियम (सामान्य सापेक्षता, क्वांटम यांत्रिकी) काम करना बंद कर देते हैं। यह "समय की शुरुआत" मानी जाती है।
2. बिग बैंग: विस्तार और शीतलन का प्रारंभ
t = 0 सेकंड के बाद (प्लैंक समय: 10⁻⁴³ सेकंड): एक अतिशय तीव्र विस्तार (Inflation) हुआ। ब्रह्मांड एक अतिसूक्ष्म अंश सेकंड में एक गेंद के आकार जितना फैल गया। इस दौरान अंतरिक्ष स्वयं फैला।
इस विस्तार के कारण ऊर्जा में उतार-चढ़ाव हुए, जो बाद में पदार्थ के रूप में संघनित हुए।
3. मूलभूत कणों का निर्माण (Particle Epoch)
t = 10⁻³⁶ सेकंड: इन्फ्लेशन रुकी, और ब्रह्मांड गर्म क्वार्क-ग्लुऑन प्लाज़्मा से भर गया।
t = 1 सेकंड: ब्रह्मांड इतना ठंडा हो गया कि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन (नाभिक के मूल कण) बनने लगे।
शुरुआत में पदार्थ और प्रतिपदार्थ (Antimatter) बराबर मात्रा में बने और एक-दूसरे को नष्ट करते रहे (Annihilation)। एक छोटा सा असंतुलन (10 अरब में 1 कण) बचा रहा, जिससे हमारा वर्तमान पदार्थी ब्रह्मांड बना।
4. नाभिकीय संश्लेषण (Nucleosynthesis)
t = 3 मिनट से 20 मिनट: तापमान और दबाव इतना कम हो गया कि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन मिलकर हाइड्रोजन (75%) और हीलियम (25%) के नाभिक बनाने लगे। इन्हीं दो तत्वों से आज का अधिकांश दृश्य ब्रह्मांड बना है।
5. पदार्थ और विकिरण का युग, प्रकाश का मुक्त होना
t = 3,80,000 वर्ष: यह एक महत्वपूर्ण घटना थी। ब्रह्मांड इतना ठंडा हो गया कि इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन के साथ जुड़कर तटस्थ हाइड्रोजन परमाणु बनाने लगे।
इससे फोटॉन (प्रकाश) मुक्त हो गए, क्योंकि अब वे इलेक्ट्रॉनों से बार-बार टकराने से मुक्त थे। यही प्रकाश आज कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (CMB Radiation) के रूप में हमारे चारों ओर विद्यमान है। यह बिग बैंग का सबसे बड़ा प्रमाण है।
6. अंधकार युग और पहले तारों-गैलेक्सियों का जन्म
t = 10 करोड़ से 50 करोड़ वर्ष: ब्रह्मांड अंधकार में डूबा था, केवल गैस के बादल थे।
गुरुत्वाकर्षण के कारण ये गैस बादल सिमटने लगे और पहले तारे (Population III Stars) बने। इन तारों ने पहली गैलेक्सियों को जन्म दिया।
इन विशालकाय पहले तारों में नाभिकीय संश्लेषण द्वारा भारी तत्व (कार्बन, ऑक्सीजन, लोहा आदि) बने, जो बाद में नए तारों, ग्रहों और जीवन की नींव बने।
7. वर्तमान ब्रह्मांड
13.8 अरब वर्ष बाद: ब्रह्मांड का विस्तार जारी है (यहाँ तक कि तेज हो रहा है, 'डार्क एनर्जी' के कारण)।
अरबों गैलेक्सियाँ, प्रत्येक में अरबों तारे हैं। हमारी गैलेक्सी, आकाशगंगा (मिल्की वे) में हमारा सौर मंडल लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले बना।
भाग 2: भारतीय दार्शनिक एवं वैदिक परिप्रेक्ष्य
भारतीय परंपरा में ब्रह्मांड की उत्पत्ति का वर्णन सृष्टि-रचना (Cosmogony) के रूप में आता है। यह एक चक्रीय मॉडल है, जिसमें सृष्टि, स्थिति और प्रलय का अनंत चक्र चलता रहता है।
मुख्य अवधारणाएँ:
नासदीय सूक्त (ऋग्वेद 10.129): यह सबसे प्रसिद्ध और दार्शनिक वर्णन है।
सृष्टि से पहले न असीत् (कुछ नहीं था), न सत् (कुछ था भी नहीं) की अवस्था थी।
तम (अंधकार) था, जो तमसा गूढ़म् (अंधकार से आच्छादित) था।
फिर एकम् (एक तत्व/ब्रह्म) की अभिव्यक्ति हुई, जिसमें से काम (इच्छा/सृजन का बीज) उत्पन्न हुआ।
यह अद्वैत (एकत्व) से द्वैत (द्वंद्व) की ओर यात्रा का वर्णन है।
सृष्टि के चक्र (कल्प):
ब्रह्मा का एक दिन = 1000 महायुग (4.32 अरब मानव वर्ष) = 1 कल्प। यह एक ब्रह्मांडीय चक्र है।
प्रत्येक कल्प के अंत में प्रलय (विनाश) होता है, जहाँ सारी सृष्टि ब्रह्म में लीन हो जाती है।
फिर अगले कल्प में फिर सृष्टि होती है। यह चक्र अनादि और अनंत है।
पंचकोश और स्थूल से सूक्ष्म की ओर:
सृष्टि ब्रह्म (परम सत्ता) से शुरू होती है। ब्रह्म से महत् (बुद्धि तत्व), फिर अहंकार, फिर पंच तन्मात्राएँ (सूक्ष्म तत्व), और फिर पंच महाभूत (स्थूल तत्व: आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) बनते हैं।
यह एक सूक्ष्म से स्थूल की ओर यात्रा है।
ब्रह्मांड की संरचना:
पुराणों में ब्रह्मांड को अंड (अंडाकार) कहा गया है, जिसमें 14 लोक (भुवन) हैं - 7 ऊपरी (भूलोक से सत्यलोक तक) और 7 निचले (अतल से पाताल तक)।
सबसे बाहरी आवरण अण्डकोश (ब्रह्मांडीय अंडे का खोल) है।
हिरण्यगर्भ सूक्त: सृष्टि के आदि में हिरण्यगर्भ (स्वर्णिम गर्भ/भ्रूण) था, जो सबका एकमात्र स्वामी था। वही इस पृथ्वी और आकाश का धारक-पोषक बना।
वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण में तालमेल एवं अंतर
| पहलू | वैज्ञानिक दृष्टिकोण (बिग बैंग) | भारतीय दार्शनिक दृष्टिकोण |
|---|---|---|
| प्रकृति | भौतिक, प्रमाण-आधारित, रेखीय (एक बार) | आध्यात्मिक, दार्शनिक, चक्रीय (अनंत बार) |
| आरंभ | एक विलक्षणता (भौतिक बिंदु) | ब्रह्म/शून्य/अव्यक्त अवस्था (चेतना) |
| प्रक्रिया | भौतिक नियमों द्वारा विस्तार और ठंडा होना | चेतना/इच्छा (काम) से सूक्ष्म से स्थूल की ओर अभिव्यक्ति |
| समय चक्र | 13.8 अरब वर्ष (एक बार) | अनंत कल्प (चक्रीय सृष्टि-प्रलय) |
| अंतिम सत्य | अज्ञात (सिंगुलैरिटी से पहले क्या था?) | ब्रह्म (शाश्वत, अविनाशी सत्ता) |
निष्कर्ष:
विज्ञान 'कैसे' (How) का उत्तर देता है - भौतिक प्रक्रियाओं और गणित के माध्यम से। दर्शन/वेद 'क्यों' (Why) और 'किस उद्देश्य से' का उत्तर देने का प्रयास करते हैं - चेतना, ईश्वर और नैतिक व्यवस्था के संदर्भ में।
दोनों ही दृष्टिकोण मानव बुद्धि के शिखर हैं और ब्रह्मांड के प्रति हमारी जिज्ञासा और आश्चर्य को दर्शाते हैं। आधुनिक विज्ञान का बिग बैंग सिद्धांत और वैदिक ऋषियों का 'नासदीय सूक्त' दोनों ही इस रहस्यमय सृष्टि की उत्पत्ति को समझने की गहरी ललक का प्रमाण हैं।
धर्म की उत्पत्ति का प्रश्न मानव सभ्यता के मूलभूत प्रश्नों में से एक है। इसे समझने के लिए हमें विभिन्न दृष्टिकोणों - ऐतिहासिक, समाजशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक-धार्मिक पर विचार करना होगा।
भाग 1: ऐतिहासिक एवं मानवविज्ञानीय परिप्रेक्ष्य
1. प्रागैतिहासिक काल: आदिम आस्थाओं का उदय
भय और आश्चर्य से उत्पन्न: प्रारंभिक मानव प्राकृतिक घटनाओं (बिजली, भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी) और जीवन-मृत्यु के रहस्यों से भयभीत था।
आत्मा और अदृश्य शक्तियों की अवधारणा: मृत्यु, सपनों, बेहोशी से आत्मा और परलोक की कल्पना विकसित हुई।
जादू-टोना और अनुष्ठान: प्रकृति को नियंत्रित करने, शिकार में सफलता पाने, बीमारी ठीक करने के लिए जादुई क्रियाएँ और टोटम (पवित्र प्रतीक) विकसित हुए।
शमनवाद (Shamanism): समुदाय का एक व्यक्ति (शमन) आत्माओं से संपर्क करने का दावा करता था। यह पुजारी/धर्मगुरु की प्रारंभिक अवधारणा थी।
2. कृषि क्रांति के बाद: व्यवस्थित धर्मों का उदय
स्थायी बस्तियाँ और समाज: कृषि के आविष्कार के बाद स्थायी समाज बने। सामूहिक जीवन के नियम आवश्यक हुए।
प्रकृति पूजा: फसल, वर्षा, सूर्य, चंद्रमा से जुड़े देवता और पूजन पद्धतियाँ विकसित हुईं।
पूर्वजों की पूजा: पितृकार्य और वंश परंपरा महत्वपूर्ण हो गई।
विशिष्ट पुरोहित वर्ग: धार्मिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञों का एक वर्ग उभरा जो समाज में प्रभावशाली हो गया।
3. सभ्यताओं का उदय: संगठित धर्म
लिखित भाषा का विकास: धार्मिक विश्वास, कथाएँ, नियम लिखित रूप में सुरक्षित हुए (जैसे - वेद, बाइबिल, कुरान)।
नैतिक नियमों का कोडीकरण: बड़े समाजों को चलाने के लिए नैतिक आचारसंहिता बनी (जैसे - हम्मुराबी का कोड, मनुस्मृति, दस आज्ञाएँ)।
राज्य और धर्म का गठबंधन: शासकों ने स्वयं को दैवीय अधिकार से युक्त बताया (देवराज, फराओ, ईश्वर के पुत्र)।
भाग 2: मनोवैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय कारण
1. अस्तित्वगत आवश्यकताएँ
अर्थ की खोज: मनुष्य को जीवन, पीड़ा और मृत्यु का अर्थ चाहिए था।
नियंत्रण की आवश्यकता: अनिश्चित संसार में नियंत्रण की भावना धर्म देता है।
आशा और सांत्वना: कष्टों में आशा और मृत्यु के बाद जीवन की कल्पना मन को शांति देती है।
2. सामाजिक कार्य
सामाजिक व्यवस्था: धर्म नैतिक मानदंड देकर समाज को स्थिर रखता है।
सामूहिक पहचान: "हम कौन हैं?" का उत्तर देता है, समुदाय की भावना पैदा करता है।
अनुशासन और नियंत्रण: धर्म के पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक की अवधारणाएँ व्यवहार को नियंत्रित करती हैं।
भाग 3: भारतीय दृष्टिकोण - धर्म की उत्पत्ति
भारतीय परंप्रदा में 'धर्म' शब्द का अर्थ पश्चिमी 'रिलिजन' से भिन्न है।
1. धर्म की परिभाषा
धारणात् धर्मः: जो धारण करे (व्यक्ति, समाज और ब्रह्मांड को) वह धर्म है।
सनातन धर्म: शाश्वत नियम जो सृष्टि के मूल में हैं। यह खोजने की वस्तु है, न कि मनुष्य द्वारा रची गई।
ऋत (Rta): वैदिक अवधारणा - ब्रह्मांड का नैसर्गिक नियम और संतुलन, जिसका पालन देवता भी करते हैं।
2. वैदिक काल से विकास
वैदिक धर्म (1500-500 ईसा पूर्व): यज्ञ-केंद्रित, प्रकृति देवताओं (इंद्र, अग्नि, वरुण) की पूजा।
उपनिषद काल (800-200 ईसा पूर्व): आत्मा-परमात्मा, मोक्ष, कर्म की गहन दार्शनिक अवधारणाएँ।
श्रमण परंपरा: बौद्ध और जैन धर्म का उदय - यज्ञों के विरोध में, अहिंसा और नैतिक जीवन पर बल।
पौराणिक धर्म: भक्ति आंदोलन, मूर्ति पूजा, लोकधर्म का विकास।
3. धर्म के स्रोत भारतीय मान्यता में
श्रुति: सुना हुआ, अपौरुषेय (वेद) - सीधे परम सत्ता से उत्पन्न।
स्मृति: याद किया हुआ (पुराण, धर्मसूत्र) - ऋषियों द्वारा रचित।
सदाचार: सज्जनों का आचरण।
आत्म-तुष्टि: अपनी अंतरात्मा की स्वीकृति।
भाग 4: आधुनिक विचारकों के दृष्टिकोण
कार्ल मार्क्स: "धर्म जनता का अफीम है" - शोषण को बनाए रखने का साधन।
सिगमंड फ्रॉयड: मानसिक आश्वासन, पितृ-सत्ता की अभिव्यक्ति।
एमिल दुर्खीम: सामाजिक एकता का प्रतीक, समुदाय की पवित्र अभिव्यक्ति।
मैक्स वेबर: सामाजिक परिवर्तन का कारक (जैसे - प्रोटेस्टैंट एथिक और पूँजीवाद)।
भाग 5: विश्व के प्रमुख धर्मों का ऐतिहासिक उदय
| धर्म | अनुमानित उदय काल | प्रमुख व्यक्ति/संदर्भ | उत्पत्ति का संदर्भ |
|---|---|---|---|
| हिंदू धर्म | 1500 ईसा पूर्व (वैदिक) | कोई एक संस्थापक नहीं | सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक संस्कृति |
| यहूदी धर्म | 2000 ईसा पूर्व | इब्राहीम, मूसा | मध्य पूर्व, ईश्वर की वाचा |
| बौद्ध धर्म | 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व | गौतम बुद्ध | हिंदू धर्म के सुधार के रूप में |
| जैन धर्म | 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व | महावीर स्वामी | श्रमण परंपरा, अहिंसा |
| ईसाई धर्म | 1वीं शताब्दी | यीशु मसीह | यहूदी धर्म से उद्भव |
| इस्लाम | 7वीं शताब्दी | पैगंबर मुहम्मद | अरब प्रायद्वीप, एकेश्वरवाद |
| सिख धर्म | 15वीं शताब्दी | गुरु नानक देव | हिंदू और इस्लामी सद्भाव से |
निष्कर्ष: धर्म क्यों और कैसे उत्पन्न हुआ?
धर्म की उत्पत्ति के लिए कोई एक कारण नहीं है, बल्कि यह बहुआयामी विकास है:
मनोवैज्ञानिक सुरक्षा: अनिश्चितता, भय और मृत्यु के भय से मुक्ति।
सामाजिक संगठन: बड़े समूहों में सहयोग, नैतिकता और व्यवस्था बनाए रखना।
बौद्धिक जिज्ञासा: अस्तित्व के गहन प्रश्नों का उत्तर देना।
राजनीतिक स्थिरता: शक्ति को वैधता प्रदान करना।
सांस्कृतिक पहचान: समुदाय की विशिष्टता बनाए रखना।
भारतीय दृष्टि में, धर्म आविष्कार नहीं, खोज है - मानव ने उन शाश्वत नियमों की खोज की जो सृष्टि के आधार हैं। यह केवल विश्वास नहीं, बल्कि जीने की कला और विज्ञान है।
अंततः, धर्म मानव चेतना की उस सार्वभौमिक अभिव्यक्ति का नाम है जो व्यक्ति को अपने आप से, समाज से और ब्रह्मांड से जोड़ने का प्रयास करती है। यह मानवीय सभ्यता के विकास का अटूट अंग रहा है और शायद तब तक रहेगा जब तक मनुष्य "मैं कौन हूँ?", "यह सब क्यों है?" जैसे प्रश्न पूछता रहेगा।