Display Partner

As

You May Like

As

उनका नाम तो है, पर निशां कहीं नहीं..

आजादी की पहली लड़ाई के 10 मई को 153 साल पूरे होने के बावजूद शायद आजतक हम सब में संवेदना नहीं जागी. हम अपनी विरासत तक के प्रति अवेयर नहीं हैं. शायद यही वजह है कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक नानाराव के नाम पर जिस हिस्टोरिकल पार्क का नाम रखा गया, वहां उनकी एक अदद प्रतिमा तक नहीं लगी है.
नायक का ही नहीं पता
अंग्रेजों के जमाने में बीवीघर के नाम से जाना जाने वाले इस पार्क को आजादी के बाद ही नानाराव स्मारक पार्क से जाना जाता है. यहां रोजाना हजारों लोग सैर करने आते हैं. लेकिन किसी को आज तक यहां नानाराव नहीं दिखे. वाकई यकीन नही आता, लेकिन ये बात बिल्कुल सच है है कि यहां नानाराव की एक छोटी सी मूर्ति तक नहीं है, जो इस बात की गवाही दे कि इन्हीं के नाम पर पार्क का नाम रखा गया है. क्राइस्ट चर्च कॉलेज के हिस्ट्री डिपार्टमेंट के हेड डॉ. सर्वेश कुमार कहते हैं ये तो ऐसा है जैसे किसी फिल्म से मुख्य किरदार ही गायब हो.
सब हैं, केवल वही नहीं
इस पार्क में मणींद्र बनर्जी, डॉ. भीमराव अंबेडकर, झांसी की रानी, मैनावती, मंगल पांडेय, तात्या टोपे, बाल गंगाधर तिलक से लेकर उस बरगद के पेड़ की याद भी बाकी है जिस पर अंग्रेजो ने आजादी की लड़ाई के योद्धाओं को फांसी पर लटका दिया था. 1857 के संग्राम के नायकों में से एक नानाराव की स्मृतियां सिर्फ पार्क के नाम के साथ ही जुड़ी हैं.
उनका नाम तो है, पर निशां कहीं नहीं.. उनका नाम तो है, पर निशां कहीं नहीं.. Reviewed by Brajmohan on 6:06 AM Rating: 5

No comments:

Comment Me ;)

Good Resource

As
Powered by Blogger.