Mukund Mishra/Mayank Shukla
KANPUR (30 June): ये तस्वीरें हैं बदलते दौर की. बदलाव के इस रंग को चटक करने के लिए सिटी की बेटियों और बहू की ये तस्वीरें काफी हैं. अब वे दबी-कुचली, इच्छाओं का मारने और मन ही मन कुंठित होने वाली बेटियां नहीं रह गई हैं. वे अपने को कमतर भी नहीं मानती. सिटी के एक स्कूल में पढ़ने वाली बेटी ने समाज की तमाम धारणाओं को दरकिनार कर धार्मिक संस्कार स्वीकार किया. उस संस्कार को, जिस पर अभी तक सिर्फ और सिर्फ पुरुषों का अधिकार माना जाता रहा है. दूसरी ने पिता को मुखाग्नि देकर लायक बेटी के साथ एक लायक बेटे का फर्ज भी अदा किया. तीसरी ने आईआईटी एंट्रेंस एग्जाम में जोन की टॉपर बनकर अपने माता-पिता का सिर फक्र से ऊंचा कर दिया. चौथी ने एक लुटेरों को सबक सिखाकर एक नजीर पेश की. ऐसी नजीर, जो हालात के आगे लाचारगी जाहिर करने की बजाए उनसे जूझने का हौसला देता है.
बदलेगी सोच
सामाजिक मान्यताएं टूट रही हैं. धार्मिक संस्कारों में लड़कियां भी आगे आ रही हैं. हालांकि अभी तक इन संस्कारों पर सिर्फ पुरुषों का ही अधिकार रहा है. इसे एक तरह से एकेडमिक रजिस्ट्रेशन भी कह सकते हैं. बावजूद इसके समाज में संस्कार के साथ ही शिक्षा पर भी पुरुषों का ही हक माना जाने लगा. अभी भी उपनयन (जनेऊ संस्कार) लड़कों का ही होता आया है. इस सोच को बदलते हुए सिटी के विद्यामंदिर कॉलेज में वोकेशनल संस्कृत की गर्ल स्टूडेंट्स ने इस धारणा को तोड़ा है. यहां की 50-60 स्टूडेंट्स फिलहाल जनेऊ पहन रही हैं. यही नहीं कॉलेज अक्टूबर में अपनी सिल्वर जुबली के मौके पर लड़कियों के लिए सामूहिक उपनयन संस्कार का आयोजन भी करने जा रहा है.
बदलाव की अलख
कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. आशारानी राय जो खुद भी जनेऊ पहनती हैं के मुताबिक शुरू में पैरेंट्स ने इसका विरोध किया, लेकिन समय के साथ उनके विचारों में बदलाव आ रहा है. राय कहती हैं, जनेऊ एक तरह से पढ़ाई शुरू करने का रजिस्ट्रेशन है. शास्त्रों में लड़कियों के जनेऊ पहनने को किसी भी तरह से गलत नहीं ठहराया गया है. सिल्वर जुबली के मौके पर सिटी की कुछ और बेटियां इस बदलाव की मुहिम में जुड़ेंगी.
क्या नहीं कर सकती
कॉलेज की स्टूडेंट रही प्रीति शुक्ला अब यहीं पढ़ा रही हैं. ये जनेऊ पहनने में आत्मसम्मान की अनुभूति करती हैं. प्रीति अंत्येष्टि भी कराती हैं. पहली बार अंत्येष्टि कराने पर अजीब-सा अनुभव करने वाली प्रीति को अब यह असहज नहीं लगता है. उनके परिवार में पहले इसे लेकर विरोध के स्वर उठे, जो अब शांत हो गए हैं. 1996 से कॉलेज में चल रहे कोर्स को कोई 500-600 गर्ल स्टूडेंट्स अब तक पूरा कर चुकी हैं.
मजबूत कांधा
मुझे नहीं किसी के कंधों की जरूरत मेरी बेटी ही ये फर्ज निभाएगी. ये ख्वाहिश एक रिटायर्ड रेलवे इंप्लाई की थी. उनकी तीन बेटियां थीं. बेटा न होने पर वे अक्सर बोलते थे कि उनको मुखाग्नि बेटियां ही देंगी. बीते दिनों उनकी सांसें थम गई. उनकी चहेती बेटी निक्की उर्फ विनीता ने पिता के इच्छा के मुताबिक उन्हें मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज अदा किया. विनीता यूनिवर्सिटी से बीपीटी का कोर्स कर रही है.
लंबी उड़ान
सिटी के कल्यानपुर स्थित कैलाश विहार में रहने वाले डॉ. वेदव्रत सिंह और डॉ. किरन सिंह की होनहार बेटी कृतिका ने आईआईटी जेईई 2009 के रिजल्ट में आलइंडिया 56वीं रैंक पाकर तहलका मचा दिया. इस रैंक से उसने न सिर्फ इंडिया भर की गर्ल्स में टॉप किया, बल्कि कानपुर जोन से जेईई में बैठने वाले 48 हजार स्टूडेंट्स में भी अव्वल रही. कृतिका की इस कामयाबी पर उसके पिता आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. वेद और गायनकोलॉजिस्ट मां डॉ. किरन को नाज है. सिर्फ उनके लिए ही नहीं कृतिका ने कानपुराइट्स का सिर ऊंचा कर दिया.
हौसला कम नहीं
बीते दिनों सिटी की एक बहू ने वह कर दिखाया, जिसकी बात सोचकर ही लोगों के पसीने छूटते हैं. हाथ-पांव कांप उठते हैं और कलेजा सिहर उठता है. भीड़भाड़ से भरे मोतीझील चौराहे पर दो-दो बदमाशों से अकेली एक महिला के जूझने का नजारा लोगों के लिए दांतों तले उंगली दबाने सरीखा ही था. गले से चेन लूटकर भाग रहे स्नेचर्स को उसने यूं ही नहीं जाने दिया. उसने एक का गिरहबान पकड़ लिया. स्नेचर्स बाइक से गिर पड़े और स्वरूप नगर की फ्रेंड्स कालोनी की अंजू उनसे जूझती रही. हैरत की बात वह उनसे बराबर मोर्चा लेती रही. आखिर बदमाशों को चेन छोड़कर भागना पड़ा और लोग हमेशा कि तरह तमाशाई बने रहे.
ये सभी घर की बेटी ही थीं
इन चारों मिसाल में सबसे कामन बात नोटिस की? पिछले कुछ दिनों में भले ये मीडिया की हेडलाइन बनी लेकिन ये सेलेब्रटी नहीं थी. हमने अंकिता मिश्रा या उन जैसी सेलेब्रटी स्टेटस पा चुकी लड़कियों का नाम नहीं लिया. जिकना नाम लिया सभी एक टिपिकल कानपुर की कल्चर को रिप्रेंज करती हैं. तो क्या हमारी सिटी की आबोहवा में ही यह सुकून देनी वाली बदलाव की बयार बह रही है? उत्तर तो पॉजिटिव ही है. -kanpur@inext.co.in
KANPUR (30 June): ये तस्वीरें हैं बदलते दौर की. बदलाव के इस रंग को चटक करने के लिए सिटी की बेटियों और बहू की ये तस्वीरें काफी हैं. अब वे दबी-कुचली, इच्छाओं का मारने और मन ही मन कुंठित होने वाली बेटियां नहीं रह गई हैं. वे अपने को कमतर भी नहीं मानती. सिटी के एक स्कूल में पढ़ने वाली बेटी ने समाज की तमाम धारणाओं को दरकिनार कर धार्मिक संस्कार स्वीकार किया. उस संस्कार को, जिस पर अभी तक सिर्फ और सिर्फ पुरुषों का अधिकार माना जाता रहा है. दूसरी ने पिता को मुखाग्नि देकर लायक बेटी के साथ एक लायक बेटे का फर्ज भी अदा किया. तीसरी ने आईआईटी एंट्रेंस एग्जाम में जोन की टॉपर बनकर अपने माता-पिता का सिर फक्र से ऊंचा कर दिया. चौथी ने एक लुटेरों को सबक सिखाकर एक नजीर पेश की. ऐसी नजीर, जो हालात के आगे लाचारगी जाहिर करने की बजाए उनसे जूझने का हौसला देता है.
बदलेगी सोच
सामाजिक मान्यताएं टूट रही हैं. धार्मिक संस्कारों में लड़कियां भी आगे आ रही हैं. हालांकि अभी तक इन संस्कारों पर सिर्फ पुरुषों का ही अधिकार रहा है. इसे एक तरह से एकेडमिक रजिस्ट्रेशन भी कह सकते हैं. बावजूद इसके समाज में संस्कार के साथ ही शिक्षा पर भी पुरुषों का ही हक माना जाने लगा. अभी भी उपनयन (जनेऊ संस्कार) लड़कों का ही होता आया है. इस सोच को बदलते हुए सिटी के विद्यामंदिर कॉलेज में वोकेशनल संस्कृत की गर्ल स्टूडेंट्स ने इस धारणा को तोड़ा है. यहां की 50-60 स्टूडेंट्स फिलहाल जनेऊ पहन रही हैं. यही नहीं कॉलेज अक्टूबर में अपनी सिल्वर जुबली के मौके पर लड़कियों के लिए सामूहिक उपनयन संस्कार का आयोजन भी करने जा रहा है.
बदलाव की अलख
कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. आशारानी राय जो खुद भी जनेऊ पहनती हैं के मुताबिक शुरू में पैरेंट्स ने इसका विरोध किया, लेकिन समय के साथ उनके विचारों में बदलाव आ रहा है. राय कहती हैं, जनेऊ एक तरह से पढ़ाई शुरू करने का रजिस्ट्रेशन है. शास्त्रों में लड़कियों के जनेऊ पहनने को किसी भी तरह से गलत नहीं ठहराया गया है. सिल्वर जुबली के मौके पर सिटी की कुछ और बेटियां इस बदलाव की मुहिम में जुड़ेंगी.
क्या नहीं कर सकती
कॉलेज की स्टूडेंट रही प्रीति शुक्ला अब यहीं पढ़ा रही हैं. ये जनेऊ पहनने में आत्मसम्मान की अनुभूति करती हैं. प्रीति अंत्येष्टि भी कराती हैं. पहली बार अंत्येष्टि कराने पर अजीब-सा अनुभव करने वाली प्रीति को अब यह असहज नहीं लगता है. उनके परिवार में पहले इसे लेकर विरोध के स्वर उठे, जो अब शांत हो गए हैं. 1996 से कॉलेज में चल रहे कोर्स को कोई 500-600 गर्ल स्टूडेंट्स अब तक पूरा कर चुकी हैं.
मजबूत कांधा
मुझे नहीं किसी के कंधों की जरूरत मेरी बेटी ही ये फर्ज निभाएगी. ये ख्वाहिश एक रिटायर्ड रेलवे इंप्लाई की थी. उनकी तीन बेटियां थीं. बेटा न होने पर वे अक्सर बोलते थे कि उनको मुखाग्नि बेटियां ही देंगी. बीते दिनों उनकी सांसें थम गई. उनकी चहेती बेटी निक्की उर्फ विनीता ने पिता के इच्छा के मुताबिक उन्हें मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज अदा किया. विनीता यूनिवर्सिटी से बीपीटी का कोर्स कर रही है.
लंबी उड़ान
सिटी के कल्यानपुर स्थित कैलाश विहार में रहने वाले डॉ. वेदव्रत सिंह और डॉ. किरन सिंह की होनहार बेटी कृतिका ने आईआईटी जेईई 2009 के रिजल्ट में आलइंडिया 56वीं रैंक पाकर तहलका मचा दिया. इस रैंक से उसने न सिर्फ इंडिया भर की गर्ल्स में टॉप किया, बल्कि कानपुर जोन से जेईई में बैठने वाले 48 हजार स्टूडेंट्स में भी अव्वल रही. कृतिका की इस कामयाबी पर उसके पिता आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. वेद और गायनकोलॉजिस्ट मां डॉ. किरन को नाज है. सिर्फ उनके लिए ही नहीं कृतिका ने कानपुराइट्स का सिर ऊंचा कर दिया.
हौसला कम नहीं
बीते दिनों सिटी की एक बहू ने वह कर दिखाया, जिसकी बात सोचकर ही लोगों के पसीने छूटते हैं. हाथ-पांव कांप उठते हैं और कलेजा सिहर उठता है. भीड़भाड़ से भरे मोतीझील चौराहे पर दो-दो बदमाशों से अकेली एक महिला के जूझने का नजारा लोगों के लिए दांतों तले उंगली दबाने सरीखा ही था. गले से चेन लूटकर भाग रहे स्नेचर्स को उसने यूं ही नहीं जाने दिया. उसने एक का गिरहबान पकड़ लिया. स्नेचर्स बाइक से गिर पड़े और स्वरूप नगर की फ्रेंड्स कालोनी की अंजू उनसे जूझती रही. हैरत की बात वह उनसे बराबर मोर्चा लेती रही. आखिर बदमाशों को चेन छोड़कर भागना पड़ा और लोग हमेशा कि तरह तमाशाई बने रहे.
ये सभी घर की बेटी ही थीं
इन चारों मिसाल में सबसे कामन बात नोटिस की? पिछले कुछ दिनों में भले ये मीडिया की हेडलाइन बनी लेकिन ये सेलेब्रटी नहीं थी. हमने अंकिता मिश्रा या उन जैसी सेलेब्रटी स्टेटस पा चुकी लड़कियों का नाम नहीं लिया. जिकना नाम लिया सभी एक टिपिकल कानपुर की कल्चर को रिप्रेंज करती हैं. तो क्या हमारी सिटी की आबोहवा में ही यह सुकून देनी वाली बदलाव की बयार बह रही है? उत्तर तो पॉजिटिव ही है. -kanpur@inext.co.in
बदलाव की डोर
Reviewed by Brajmohan
on
6:26 AM
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